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देश का वास्तविक हीरो कौन अक्षय कुमार, सलमान खान, शाहरुख़ खान या आर्मी के जवान ?

ऋतु समय
ऋतु समय
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भारत की आजादी से लेकर आज तक हम अपने देश की स्वतंत्रता, सीमा सुरक्षा व्यवस्था और इस आजादी के ऊपर गुमान किसी की  वजह से करते आ रहे हैं ? भारतीय युवाओं को यह सोचने और समझने की जरुरत है। युवाओं में अक्सर चर्चा होती रहती है की आज कौन सी मूवी सिनेमा हाल में लग रही है और तुमने कौन सी मूवी देखा ? मेरा तो पसंदीदा हीरो अक्षय तुम्हारा कौन है ? कौन सी फिल्म हिट गयी अरे मैं तो अमिताभ की आवाज का दीवाना हूँ ऐसी चर्चाएँ आम तौर पर युवाओं के बीच परस्पर होती रहती है लेकिन परदे की हकीक़त से बहार आकर देखिये तो महसूस होगा की देश का सच्चा हीरो कौन है ? वह जिसे देखने के लिए हम पैसे खर्च करते है और दर्शकों के द्वारा उनकों उनके व्यक्तिगत टैलेंट पर फ़िदा होकर हीरो बनाते हैं या वह जो देश के लिए किसी भी परिस्तिथि में अपनी जान दांव पर लगाने की लिए तैयार रहता है ये जानते हुए की उसके जाने के बाद उसके परिवार को कोई देखने वाला नहीं होगा ,पूछने वाला नही होगा क्यूंकि वो परदे पे नहीं आते और उनका मनोरंजन नहीं कर सकते है। यक़ीनन यह कहने में शर्म महसूस होता है अगर आप देश के 100 प्रतिशत युवाओं से यह सवाल करें की कारगिल युद्ध में शहीद होने वालों में से किसी एक का नाम बता दें तो मुश्किल है की 10 प्रतिशत युवाओं का आकड़ा भी नही छुएगा। यदि आप उनसे यह प्रश्न करके देख ले की क्या आप शहीद मेजर हरमिंदर पाल सिंह, कैप्टन अनुज नैयर,लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज,विवेक गुप्ता, कैप्टन विक्रम बत्रा को जानते है या भारत के लिए वो कैसे शहीद हुए ? आपको जवाब सकारात्मक नहीं मिलने वाला।
अगर बात परदे पे आने वालें एक्शन हीरो की हो तो उनके पुरे परिवार के सदस्यों या पीढ़ी दर पीढ़ी के नाम आपको वो याद दिल सकते हैं वो इसलिए शायद इसमें सिनेमा और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों की बड़ी भूमिका है जिसमें बॉलीवुड को काफी प्रमुखता दी जाती हैं लेकिन यह कहाँ तक सही है? क्या मनोरंजन से देश की दशा और दिशा तय की जा सकती हैं? क्या भारतीय युवाओं को फिल्मों द्वारा और फिल्मों में दिखने वालें हीरो से उनके अन्दर प्रेरणा का लौं जलाया जा सकता है ? जी नहीं जिस आधुनिकता में हम जी रहे हैं और बाजारवाद ने सब कुछ दांव पर लगाने को विवश कर दिया है और इस दौर में फ़िल्में जिस तरह से समाज का आइना कही जाती थी उसने अब इंसान के चरित्र को धूमिल कर दिया  है भारतीय फ़िल्में भारतीय संस्कृति की नहीं पक्श्चिमी संस्कृति के विकास की पक्षधर होती जा रही हैं। किसी भी देश का सिनेमा उसकी संस्कृति और सभ्यता को पर्दर्शित करता है लोग उसमे अपनी छवि अपना रोल मॉडल चुनने लगते हैं और सबसे बड़ी बात जो चीज़े हमे दिखाई और प्रत्यक्ष सुनाई देती है वह हमारे मन पर गहरा असर डालती है इसलिए आज भारत में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा में सिनेमा भी जिम्मेदार है और जिस तरह से वैश्वीकरण के बाद भारतीय सिनेमा का स्वरुप बदला है जिसमें महिलाओं को प्रस्तुत करने का जो दृष्टिकोण है उससे ये साफ़ झलकता है की महिलाओं की छवि सिर्फ एक स्तर पर तय कर दी गयी है। निर्भया जैसी घटना जो लगातार बिना सिख लिए बढ़ती जा रही है इन सब में कहीं न कहीं सिनेमा के नकारात्मक पक्ष का परिणाम है। जनगणना 2011 के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04  प्रतिशत आंकी गयी है जिसका प्रयोजन वे सभी लोग 74 .04  के अंतर्गत आएंगे जो कम से कम हस्ताक्षर करना जानते हो अब आप इससे अंदाजा लगा सकते है की हम वास्तिक रूप से किस स्तर पर हैं।
भारत में सिनेमा ने 100 साल पुरें कर लिए इसका अभिप्राय यह नहीं की भारत में सिनेमा देखने वालें भी उतने परिपक्क हो गए हों हैं। हम मानते है स्वतंत्रता के पहले और बाद समाज में फैलीं कई समस्याओं का अंत में सिनेमा का योगदान रहा है जैसे बाल विवाह, सती प्रथा जैसे कुरूतियों का अंत करने में सिनेमा सफल रहा है तो सोचिएं अच्छी चीजों से समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है तो अश्लील चीजों के प्रदर्शन से भी बड़ा प्रभाव पड़ता होगा। भारत में सिर्फ डिग्रीयां ले लेने से व्यक्ति शिक्षा में संपन्न नहीं हो जाता। मूल रूप से शिक्षा तो व्यक्ति के आचार, विचार और संस्कार से पकड़ में आती है। व्यक्ति जिन चीज़ों को देख रहा है उससे क्या ग्रहण कर रहा है।

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सन्देश : हमारे कहने का पर्याय यह है की मनोरंजन के लिए दायरा तय कर फिल्मों की प्रदर्शनी हो जिसमें युवाओं को प्रेरणा के साथ-साथ सिख मिले। देश के सच्चे देशभक्तों से अवगत हो उनसे प्रेरणा ले। परदे और वास्तविक जीवन में प्राण देने वालें हीरो में अंतर समझ सके और तभी युवाओं के भीतर परिवार और देश के लिए सच्ची सेवा की भावना जागृत की जा सकती है। क्यूंकि फिल्मों से युवां बहुत ज्यादा ही प्रभावित हो रहे हैं जैसा हीरो करता है वैसा वो करने की कोशिश करते है और  अपनी गर्ल फ्रेंड के लिए चोर भी बनाने को तैयार रहते है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा युवा वर्ग की संख्या है लेकिन उनको सही पथ पर लाने के लिए भारत को सही तस्वीर दिखाना होगा तभी भारत शिखर पर पहुँच कर अपनी तकदीर बदल सकता है।

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जय हिन्द जय भारत


ऋतु राय

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