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माँ ही मुहब्बत है,मुहब्बत ही माँ है

ऋतु समय
ऋतु समय
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माँ

तुम कोई परिभाषा नहीं हो
किसी दबे विचारों की अभिलाषा नहीं हो
तुम तो हो सजीव जीवन
मानव मन में बसी भगवन
रूप तुम्हारा तय नहीं है
नारी रूप अव्यय नहीं है
सदन की तुम संपत्ति हो
परिवार की तुम प्रस्तुति हो
ह्रदय की तुम आवृति हो
बच्चो के लिए तुम स्तुति हो
परम्परा की तुम प्रेमी हो
माँ तुम हमारी देवी हो

ऋतु राय

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